मनुष्य में पोषण

मनुष्य में पोषण 


➤ आहार नाल मूल रूप से मुँह से गुदा तक विस्तारित एक लंबी नाल है ! जो भोजन हमारे शरीर में एक बार प्रविष्ट हो जाता है उसका क्या होता है हम तरह - तरह के भोजन खाते है जिन्हे उसी भोजन नली से गुजरना होता है ! प्राकृतिक रूप से भोजन को एक प्रक्रम से गुजरना होता है जिससे वह उसी प्रकार के छोटे - छोटे कणों में बदल जाता है इसे हम दांतों से चबाकर पूरा कर लेते है ! क्योंकि आहार का आस्तर बहुत कोमल होता है अतः भोजन को गीला किया जाता है ताकि इसका मार्ग आसान हो जाये जब हम अपनी पसंद का कोई पदार्थ खाते है तो हमारे मुँह में पानी आ जाता है यह वास्तव में केवल जल नहीं है यह लाला ग्रंथि से निकलने वाला एक रस है जिसे लालारस या लार कहते है ! जिस भोजन को हम खाते है उसका दूसरा पहलू उसकी जटिल रचना है ! यदि इसका अवशोषण आहार नाल द्वारा करना है तो इसे छोटे अणुओं में खंडित करना होगा ! यह काम जैव - उत्प्रेरक द्वारा किया जाता है जिन्हे हम एंजाइम कहते है ! लार में भी एक एंजाइम होता है जिसे लार एमिलेस कहते है यह मंड जटिल अणु को सरल शर्करा में खंडित कर देता है ! भोजन को चवाने के दौरान पेशीय जिह्वा भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिला देती है आहार नली के हर भाग में भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढंग से प्रक्रमित होने के लिए आवश्यक है ! यह क्रमाकुंचक गति पूरी भोजन नली में होती है ! मुँह से आमाशय तक भोजन ग्रसिका या एसोफेगस द्वारा ले जाया जाता है ! आमाशय एक बृहत अंग है जो भोजन के आने पर फैल जाता है ! आमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने में सहायक होती है ! ये पाचन कार्य आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों के द्वारा संपन्न होते है !
➤ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्रावण करते है ! हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है ! आपके विचार में अम्ल और कौन सा कार्य करता है ! सामान्य परिस्थितियों में श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है ! हमने बहुधा वयस्कों को 'एसिडिटी अथवा अम्लता' की शिकायत करते सुना है ! क्या इसका संबंध उपरोक्त वर्णित विषय से तो नहीं है ! आमाशय से भोजन अब  क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है ! यह अवरोधनी पेशी द्वारा नियंत्रित होता है ! क्षुद्रांत्र आहार नाल का सबसे लम्बा भाग है अत्यधिक कुंडलित होने के कारण यह संहत स्थान में अवस्थित होती है ! घांस खाने वाले शाकाहारी का सेल्यूलोज पचाने के लिए लंबी क्षुद्रांत्र की आवश्यकता होती है ! मांस का पाचन सरल है अतः बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है ! क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पूर्ण पाचन का स्थल है ! इस कार्य के लिए यह यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है ! आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है और अग्न्याशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाया जाता है ! यकृत से स्रावित पित्तरस इस कार्य को करता है, यह कार्य वसा पर क्रिया करने के अतिरिक्त है ! क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकायों के रूप में होता है जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्क़िल हो जाता है ! पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकायों में खंडित कर देता है जिससे एंजाइम की क्रिया शीलता बढ़ जाती है ! यह साबुन के मैल पर इमल्सीकरण की तरह ही है !
➤ अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है तथा इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एंजाइम होता है ! क्षुद्रांत्र की भित्ति में ग्रंथि होती है जो आंत्र रस स्रावित करती है ! इसमें उपस्थित एंजाइम अंत में प्रोटीन को अमीनो अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में तथा वसा को वसा अम्ल तथा गिल्सरॉल में परिवर्तित कर देते है ! पचित भोजन को आंत्र कि भित्ति अवशोषित कर लेती है ! क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते है जिन्हें दीर्घ रोम कहते है ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बड़ा देते है ! दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाते है ! यहां इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नये ऊतकों के निर्माण और पुराने ऊतकों की मरम्मत में होता है ! बिना पचा भोजन बृहदांत्र में भेज दिया जाता है जहां दीर्घरोम इस पदार्थ में से जल का अवशोषण कर लेते है ! अन्य पदार्थ गुदा द्वारा शरीर के बाहर कर दिया जाता है ! इस वजर्य पदार्थ का बहि:क्षेपण गुदा अवरोधनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है! 
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Milan Tomic

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