मनुष्य में पोषण
➤ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्रावण करते है ! हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है ! आपके विचार में अम्ल और कौन सा कार्य करता है ! सामान्य परिस्थितियों में श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है ! हमने बहुधा वयस्कों को 'एसिडिटी अथवा अम्लता' की शिकायत करते सुना है ! क्या इसका संबंध उपरोक्त वर्णित विषय से तो नहीं है ! आमाशय से भोजन अब क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है ! यह अवरोधनी पेशी द्वारा नियंत्रित होता है ! क्षुद्रांत्र आहार नाल का सबसे लम्बा भाग है अत्यधिक कुंडलित होने के कारण यह संहत स्थान में अवस्थित होती है ! घांस खाने वाले शाकाहारी का सेल्यूलोज पचाने के लिए लंबी क्षुद्रांत्र की आवश्यकता होती है ! मांस का पाचन सरल है अतः बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है ! क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पूर्ण पाचन का स्थल है ! इस कार्य के लिए यह यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है ! आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है और अग्न्याशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाया जाता है ! यकृत से स्रावित पित्तरस इस कार्य को करता है, यह कार्य वसा पर क्रिया करने के अतिरिक्त है ! क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकायों के रूप में होता है जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्क़िल हो जाता है ! पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकायों में खंडित कर देता है जिससे एंजाइम की क्रिया शीलता बढ़ जाती है ! यह साबुन के मैल पर इमल्सीकरण की तरह ही है !
➤ अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है तथा इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एंजाइम होता है ! क्षुद्रांत्र की भित्ति में ग्रंथि होती है जो आंत्र रस स्रावित करती है ! इसमें उपस्थित एंजाइम अंत में प्रोटीन को अमीनो अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में तथा वसा को वसा अम्ल तथा गिल्सरॉल में परिवर्तित कर देते है ! पचित भोजन को आंत्र कि भित्ति अवशोषित कर लेती है ! क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते है जिन्हें दीर्घ रोम कहते है ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बड़ा देते है ! दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाते है ! यहां इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नये ऊतकों के निर्माण और पुराने ऊतकों की मरम्मत में होता है ! बिना पचा भोजन बृहदांत्र में भेज दिया जाता है जहां दीर्घरोम इस पदार्थ में से जल का अवशोषण कर लेते है ! अन्य पदार्थ गुदा द्वारा शरीर के बाहर कर दिया जाता है ! इस वजर्य पदार्थ का बहि:क्षेपण गुदा अवरोधनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है!
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