भारतीय कृषि अनुसंधान के अनुसार भारत की मिट्टी को आठ भागों में बाँटा गया क्षेत्रीय विस्तार के आधार पर इसे 6 भागों में बाँटा गया है!
(1) जलोढ़ मिट्टी (2) काली मिट्टी (3) लाल मिट्टी (4) लैटेराइट मिट्टी (5) मरुस्थलीय मिट्टी (6) पर्वतीय मिट्टी
(1) जलोढ़ मिट्टी - भारत में सबसे अधिक पाई जाने बाली मिट्टी जिसे क्रोक या कछारी कहते है इस मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा हुआ है इस मिट्टी में पोटेशियम की अधिकता और नाइट्रोजन की कमी के कारण यह भारत की सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी है इस मिट्टी में गेंहू,धान, मक्का, दलहन आदि फसलों के लिए महत्वपूर्ण मिट्टी है! (2) काली मिट्टी - इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी फटने से जो लावा प्रभावित होता है उसके जमने से इसका निर्माण हुआ इसे रेगुड़ मिट्टी भी कहते है यह मिट्टी कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी है इस मिट्टी का विस्तार प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में सबसे अधिक है इस मिट्टी का काला रंग होने का कारण टाइटेनियम है! (3) लाल मिट्टी - इस मिट्टी का विस्तार निर्माण कार्यान्त्रित और रबेदार शैलों से हुआ है इस मिट्टी का लाल रंग होने का कारण लौह ऑक्साइट है! (4) लैटेराइट मिट्टी - लैटेराइट मिट्टी को भागों में बांटा गया है! (१) सफेद लैटेराइट - इस मिट्टी का सफेद होने का कारण कैलोइन है इस मिट्टी में कंकड़ और पत्थर अधिक पाये जाते है इसी कारण यह उनुपजाऊ है! (२) लाल लैटेराइट - इस मिट्टी का लाल रंग लौह ऑक्साइट की अधिकता के कारण है! (5) मरुस्थलीय मिट्टी - यह मिट्टी भारत के सबसे बड़े मरुस्थल थार मरुस्थल और निकट वर्ती शुष्क प्रदेशों में पाई जाती है स्थलीय भाषा में इस मिट्टी को कल्लार, ऊसर, धूल, कंकड़ आदि नामों से जाना जाता है इस मिट्टी में जल ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है! (6) पर्वतीय मिट्टी - पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक होती है। पर्वतीय मिट्टी में भी पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है। पहाड़ी क्षेत्र में खास करके बागबानी कृषि होती है। पहाड़ी क्षेत्र में ही झूम खेती होती है। झूम खेती सबसे ज्यादा नागालैंड में की जाती है। पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा गरम मसाले की खेती की जाती है।
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